भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि विधायिका अदालत के फैसले में खामी को दूर करने के लिए नया कानून लागू कर सकती है लेकिन उसे सीधे खारिज नहीं कर सकती है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने यहां ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में कहा कि न्यायाधीश इस पर गौर नहीं करते हैं कि जब वे मुकदमों का फैसला करेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा और सरकार की निर्वाचित शाखा तथा न्यायपालिका में यही फर्क है।
उन्होंने कहा, ”इसके बीच विभाजनकारी रेखा है कि अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है और क्या नहीं कर सकती है। अगर किसी विशेष मुद्दे पर फैसला दिया जाता है और इसमें कानून में खामी का जिक्र किया जाता है तो विधायिका उस खामी को दूर करने के लिए नया कानून लागू कर सकती है।”
सीजेआई ने कहा, ”विधायिका यह नहीं कह सकती कि हमें लगता है कि फैसला गलत है और इसलिए हम फैसले को खारिज करते हैं। विधायिका किसी भी अदालत के फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती है।” उन्होंने कहा कि न्यायाधीश मुकदमों का फैसला करते समय संवैधानिक नैतिकता का अनुसरण करते हैं न कि सार्वजनिक नैतिकता का। उन्होंने कहा, ”हमने इस साल कम से कम 72,000 मुकदमों का निस्तारण किया है और अभी डेढ़ महीना बाकी है।”
न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर संरचनात्मक बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि यदि समान अवसर उपलब्ध होंगे तो अधिक महिलाएं न्यायपालिका में आएंगी। उन्होंने कहा, ”हमें समावेशी अर्थ में योग्यता को पुन: परिभाषित करने की आवश्यकता है। यदि आप न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर समान अवसर पैदा करते हैं तो अधिक महिलाएं इसका हिस्सा बनेंगी।” उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम को विश्व कप के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वे उन्हें प्रेरित करते हैं।